क्रांति सूर्य ज्योतिबा फुले जन्म 11 अप्रैल 1827….

जिस महापुरुष ने भारत में शूद्रों अतिशूद्रों की गुलामी का मुख्य कारण शिक्षा से वंचित होना बताया और उन्हें शिक्षित करने के लिए ब्राह्मणों और अन्य रूढ़िवादियों के विरोध के बावजूद अनेकों स्कूल खोले और समाज में घूम घूम कर शिक्षा के महत्व को समझाया।

          जिस महापुरुष ने लोगों को समझाया कि नारी उत्थान के बिना समाज का उत्थान नहीं हो सकता।

जिस महापुरुष ने कहा

विद्या के अभाव से मति नष्ट हुई 

मति के अभाव से नीति नष्ट हुई

नीति के अभाव से गति नष्ट हुई

गति के अभाव से वित्त नष्ट हुआ

वित्त के अभाव से शूद्रों का पतन हुआ ,इतना अनर्थ अकेले अविद्या ने किया,

        जिस महापुरुष ने अपनी पत्नी को शिक्षित करके भारत की प्रथम भारतीय महिला शिक्षिका और शूद्र समाज की पहली महिला समाज सेविका बनाया ।

        जिस महापुरुष ने ब्राह्मणों के गढ़ पूना में रहकर ब्राह्मण वादी पाखंड वाद और वर्चस्व वाद को चुनौती दी ।

      जिस महापुरुष ने गुलाम गिरी,किसान का कोड़ा ,ब्राह्मण शाही का भंडाफोड़ और अनेकों किताबें लिखकर ब्राह्मणी ग्रंथों को षडयंत्र पूर्वक शूद्रों को गुलाम बनाने के लिए लिखी गई काल्पनिक कहानियां सिद्ध किया,

        जिस महापुरुष ने सत्य शोधक समाज नाम का संगठन बनाकर पूरे समाज को ब्राह्मण वाद के मकड़जाल से आजाद कराने का अभियान चलाया,

         जिस महापुरुष ने बिना पंडित पुरोहित के वर वधू कोअपने द्वारा रचित शपथ दिलाकर विवाह का प्रचलन शुरू किया और समाज में पुरोहित विहीन विवाह प्रथा को प्रोत्साहित किया ।

          जिस महापुरुष ने विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया एवं अवैध बच्चों के लिए अनाथालय खोला।

         जिस महापुरुष ने छत्रपति शिवाजी की समाधि को ढूँढ़कर उन्हें शूद्रों का राजा कहकर पहली बार शिवाजी की जयंती मनाने की शुरुआत करके ब्राह्मणों द्वारा विलुप्त कर दिये गये छत्रपति शिवाजी की गौरव गाथा को पुनर्स्थापित किया।

         जिस महापुरुष को बाबा साहेब डा. अम्बेडकर ने गौतम बुद्ध ,संत कबीर की ही तरह अपना गुरू माना ।

          जिन्होंने हिन्दू समाज की छोटी जातियों को उच्च वर्णियों के प्रति उनकी गुलामी की भावना के संबंध में जागृत किया, जिन्होंने विदेशी शासन से मुक्ति पाने से भी

          सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना अधिक महत्वपूर्ण है इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया।उस आधुनिक भारत के महान शूद्र ” महात्मा ज्योतिबा फुले ” की समृति मे सादर समर्पित

( शूद्र कौन थे? इस पुस्तक की समर्पण पत्रिका,दिनांक 10 अक्टूबर 1946 डा. बी.आर. अम्बेडकर )

         ज्योतिबा का अनुयायी कहलाने में मैंने इसके पूर्व भी कभी लज्जा अनुभव नहीं की और न ही आज अनुभव होता है। मैं आज आत्मविश्वास के साथ कह सकता हूँ कि केवल मैं अकेला ही आज तक ज्योतिबा के साथ वफादार रहा हूँ हमारे बहुत सारे साथी हिन्दू महासभा और कुछ कांग्रेस में जूठन खाने चले गये ,और मुझे पूर्ण विश्वास है कि जब कभी इस देश में जनता के सर्वांगीण हितों की रक्षा करनेवाला राजनैतिक दल सामने आयेगा, वह चाहे कोई भी नाम धारण करे ,फिर भी उसे ज्योतिबा की नीति, उनका तत्व ज्ञान और उनके कार्यक्रम को लेकर ही आगे बढ़ना होगा । लोकतंत्र का यही एकमात्र सच्चा मार्ग है।

( डॉ. अम्बेडकर भाषण नासिक 7 दिसम्बर 1951 )

मेरे तीसरे गुरु ज्योतिबा फुले हैं , ब्राह्मणेत्तर समाज के सच्चे गुरू फुले ही हैं। दर्जी, कुम्हार ,नाई ,कोली ,महार ,मांग ,चमार आदि जातियों को मानवता के सबक फुले ने ही दिये और सिखाये ,हम सब ज्योतिबा फुले के दिखाये मार्ग पर आगे बढ़ते रहेंगे ( डा. अम्बेडकर )

 आधुनिक भारत की

सामाजिक सांस्कृतिक क्रांति के प्रणेता….

महात्मा ज्योतिराव फुले को 

11 अप्रैल जयंती के अवसर पर सत सत नमन ….

      समस्त देशवासियों को विषमतावादी ब्राह्मण वाद से मुक्त होकर अपने महापुरुषों के बताये समता वादी मार्ग पर अग्रसर होने की मंगल कामना !!!

चन्द्र भान पाल(बी.एस.एस.)